अभी तो रात बाक़ी है ज़रा सा और सोने दो |
किसी के ख़ाब आने हैं मुझे खाबों में खोने दो ||
ज़बरदस्ती किसी को तुम हँसाओगे भला कैसे |
लिखा तक़दीर में उसकी अगर रोना तो रोने दो ||
बना रक्खा है मैंने पैर के तलुओं को फ़ौलादी |
बला से राह में कांटें कोई बोता है बोने दो ||
गुनाहगारों से भर के कश्ती दरिया में उतारी है |
डुबाता है अगर माझी तो कश्ती को डुबोने दो ||
मेरी आग़ोश में सर रख के वो ग़म हल्का करते हैं |
उन्हें आंसू बहा कर मेरे दामन को भिगोने दो ||
जिसे ग़म से मुहब्बत है जिसे ग़म रास आते हैं |
अकेले ही उसे उसके ग़मों का बोझ ढ़ोने दो ||
खड़ा चुपचाप ‘सैनी ’तो तमाशा देखता रहता |
ग़ज़ल कहनी कहे जाओ जो होता है सो होने दो ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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