Thursday, 28 June 2012

नफ़रत के हाशिये


काग़ज़ पे रोज़ खींचे जो नफ़रत के हाशिये |
एसे  क़लम  को  तोड़  के  कूड़े  में  डालिए ||

जब-जब भी उसने राह में  कांटे बिछा दिए |
हमने   बग़ल   से  दूसरे  रस्ते   बना  लिए ||

जब ख़ाक छानने से तुम्हे कुछ नहीं मिला |
जो जानना है पास आके  हम  से  जानिये ||

आराम  तलबी   में   गए  हैं  डूब   हम सभी |
ख़ुद हमने अपनी मौत के  सामाँ जुटा लिए ||

अच्छे -बुरे  हैं  लोग   सभी   इस ज़मीन पर  |
सबको  न  आप  एक  ही  लाठी  से  हांकिये ||

उंगली पकड़ के रोज़ यूं कब तक चलेंगे आप |
ख़ुद  पे  भरोसा कर के डगर ख़ुद  निकालिए ||

बांटो  ज़मीन   घर  ओ   सभी  जायदाद  को |
पर जो दिलों में  प्यार है  उसको  न  बांटिये ||

भड़का  रहे  मुझे  मेरे  भाई  के  ही  ख़िलाफ़ |
अब आप अपने घर का ज़रा  रस्ता नापिये ||

मक़बूलियत बटोर के ‘सैनी’को क्या मिला |
चारो  तरफ़ से सैंकड़ों   दुश्मन  बना  लिए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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