मिरे दर्द-ए-दिल की दवा कुछ नहीं है |
दुआओं में भी अब रहा कुछ नहीं है ||
ख़ुदा ही बचाएगा तूफाँ से कश्ती |
ख़ला कुछ नहीं नाख़ुदा कुछ नहीं है ||
समझ मैं गया हूँ तिरे प्यार को अब |
“फ़रेब-ए-नज़र के सिवा कुछ नहीं है ”||
तजरबा ये कहता है इस ज़िंदगी में |
ख़ुशी का मज़ा ग़म बिना कुछ नहीं है ||
हुए आज तक जो वो उनसे मक़ाले |
रहे बेनतीजा हुआ कुछ नहीं है ||
मिटा डाला मैंने सभी हसरतों को |
दिल-ए-नातवाँ पर बचा कुछ नहीं है ||
चले जा रहे हैं सभी आँख मूंदे |
कहाँ जायेंगे ये पता कुछ नहीं है ||
सुना है मुहब्बत वो करते हैं मुझसे |
मगर मुझसे एसा कहा कुछ नहीं है ||
सजा ली है मैंने ये महफ़िल अदब की |
बिना ‘सैनी ’तेरे मज़ा कुछ नहीं है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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