हमारे दिल में जो भी था वो सब कुछ कह दिया उनको |
ख़ुदा ही जानता है अब तो ये कैसा लगा उनको ||
मुझे अर्सा हुए बीमारियों ने बाँध रक्खा है |
अभी तक भी नहीं क्यों कर चला आख़िर पता उनको ||
जिन्हें ज़र के समुन्दर में नहाने की पडी आदत |
ख़याल आयेगा क्यों मेरी ग़रीबी का भला उनको ||
बड़ा मुंहफट हूँ मेरी इस कमी को जानते हैं सब |
कहा होगा ज़रूर एसा लगा है जो बुरा उनको ||
समझते हैं मुझे वो क्या ये उनकी सोच है अपनी |
मगर मैंने तो समझा है फ़क़त इन्सां भला उनको ||
कभी गुस्से में उनके देखना तेवर अरे तौबा |
नहीं ख़तरे से है ख़ाली ज़रा भी छेड़ना उनको ||
कराते हैं बड़ा ख़र्चा तरस खाते नहीं बिल्कुल |
बदलते इस ज़माने की लगी है अब हवा उनको ||
पसीजा दिल कभी उनका नहीं मेरी तबाही पर |
कईं लोगों का कहना है सुकून इससे मिला उनको ||
बिठा कर अपनी पलकों पर हमेशा ही उन्हें रक्खा |
समझता ही रहा ‘सैनी ’हमेशा हमनवा उनको ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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