आप सा है हमनवा बस और चाहत कुछ नहीं |
है मुकम्मल क़ाफ़िला बस और चाहत कुछ नहीं ||
जब भी जी चाहा वहाँ जाकर गला तर कर लिया |
पास में हो मैकदा बस और चाहत कुछ नहीं ||
दे रहा जो दूसरों को लौट कर मिलना वही |
कर सकूँ सब का भला बस और चाहत कुछ नहीं ||
आग , पानी और हवा ये हैं ख़ुदा की नेमतें |
ये मुझे भी हों अता बस और चाहत कुछ नहीं ||
कह रहा हूँ जो फ़क़त सुन लीजिएगा ग़ौर से |
आपने जब सुन लिया बस और चाहत कुछ नहीं ||
खींच ली दीवार जब हमने हमारे दरमियान |
हो गया है फैसला बस और चाहत कुछ नहीं ||
आज फ़ाक़ामस्त ‘सैनी ‘ को ज़रुरत है ही क्या |
दाल रोटी के सिवा बस और चाहत कुछ नहीं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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