Sunday, 8 July 2012

जज़्बा -ए-आशिक़ी


जज़्बा -ए-आशिक़ी अब इतने उफान पर है |
चर्चा -ए -इश्क़  मेरा  सब की ज़बान पर  है ||

इज़्हार  मैंने  सारी  बातों  का  कर  दिया  है |
बस बात अब तो तेरे दीन-ओ -इमान पर है ||

तानी   हुईं    कमाने     साधे    हुए  निशाने |
बेख़ौफ़   पर  परिंदा  अपनी  उड़ान   पर  है ||

दम है तो शेर  पर आ नीचे से  वार  कर  तू |
बस जान तो सलामत  तेरी  मचान  पर  है ||

आदी हुए हैं अब  तो  सब  मरने  मारने  के |
सामान मौत का अब हर इक दुकान पर  है ||

भरता नहीं है  तेरा क्या  पेट  अपने  घर  में |
जो   अब  निगाह  तेरी  सारे  जहान  पर  है ||

ए बर्क़ तू  इनायत   गिरने   से  पहले  करना |
लाखों  का  क़र्ज़ा  बाक़ी   मेरे  मकान  पर  है ||

इल्ज़ाम  मुझ पे  आयद  है तेरी आशिक़ी  का |
आदिल  का  फ़ैसला  अब  तेरे  बयान  पर  है ||

महफ़िल में लोग अब क्यूँ कम से लगे हैं आने |
‘सैनी ’ सुखनवरी   की  अब  तू  ढलान  पर  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी    

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