Sunday, 22 July 2012

मुसीबत बड़ी


कम  हैं  साधन   मुसीबत  बड़ी |
आम   लोगों   की   ये    त्रासदी ||

घर  मिले   ही  नहीं  आज  तक |
कितनी पब्लिक सड़क पर पडी ||

साल    भर     होती   हैं    बैठकें |
बात   होती   नहीं    काम    की ||

रोशनी   खा   गए  सब  अमीर |
दी      हमें      तीरगी  - तीरगी ||

वो  तो  समझो  गया  जान  से |
जिसने  सच्ची   ज़बां खोल दी ||

आज  अहले - सियासत  कहाँ |
एक  घर  में  सिमट  सी  गयी ||

घर  से   जाते  हुए   बेटी आज |
अश्क  कितने    मुझे  दे  चली ||

साफ़ सुथरा था अब तक अदब |
आ   गयी   इसमें     सौदागिरी ||

हाल   सब   का   ही   बेहाल  है |
एक    ‘सैनी’   नहीं   तू    दुखी ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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